माँ की ममता - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'

आँचल में छुपाकर के अपने,
ममता के स्नेह से नहलाती है,
पाल पोस अपना जीवन दे,
प्रिय सन्तति मनुज बनाती है। 
करुणामय माँ सुनहर सपने, 
सन्तानों में सदा सजाती है।
सदाचार संस्कार सींचती,
मानवता मूल्य सिखाती है।
चाह हृदय बस हो सपूत सुत,
अपना सुख सर्वस्व लगाती है।
माता गुरु सहचरी मीत बन,
सुशिक्षित सुपात्र बनाती है।
नीति रीति सम्प्रीति गीति बन,
अरुणिम आलोक दिखाती है।
गीली माटी सम कोख लाल,
बन कुम्हार पात्र सजाती है।
आरोहण नित ध्येय शिखर सुत, 
विभव सुख पद यश चाहती है।
हर विपदा क्लेशों को सहती,
नैनाश्रु नेह छलकाती है। 
तनिक खरोंच न आने देती, 
अपमान दर्द सह जाती है।
माँ तुम हो ममता की मूरत, 
प्रिय लोरी रात सुनाती है। 
प्रेमांचल की ऋणी मातु हम, 
तेरी यादें बहुत रुलाती है।
जीता हूँ हरपल माँ तुझको, 
जब रूहें तू बस जाती है। 
माँ का दूध स्वाभिमान बन, 
माँ जीवन जीना सिखाती है।


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