
अरकान : फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
तक़ती : 122 122 122 122 122 122 122 122
न दौलत इमारत विरासत सियासत न ताक़त हिमाक़त न कोई गिला है,
अधूरी जवानी अधूरी रवानी ग़रीबी का मानी यही सिलसिला है।
हिक़ारत तिजारत बजारत की लानत अलालत जलालत जहालत अदालत,
अलावा अगर इसके कुछ भी मिला है तो कोई बताए इन्हें क्या मिला है।
किसी की ख़िलाफत न कोई बग़ावत न कोई शिकायत न औसत शरारत,
न करने की हिम्मत न लड़ने की क़ुव्वत यही है महारत जो जीवन खिला है।
शराफ़त नज़ाकत नफ़ासत के बदले न आगत का आदर न ख़ातिर ख़ुशामद,
न आहत को राहत न क़िस्मत में स्वागत, कराहत-कराहत यही तो गिला है।
न कोई किताबत खिताबत न लागत निहायत किफ़ायत से इतना बता दूँ,
लियाकत नहीं पर लियाकत भुलाकर सपनों का उसने बनाया किला है।
न कोई हिफाजत न कोई इबादत न शोहरत इनायत इजाज़त किसी की,
सलामत की होती रही है हिमायत यही सोच कर आ रहा क़ाफ़िला है।
अमानत ज़मानत ख़यानत की आढ़त न ख़िल्लत न ज़िल्लत हिदायत किसी की,
सदा प्राण को है शहादत की चाहत यही सुन क़यामत का गुम्बद हिला है।
गिरेंद्र सिंह भदौरिया 'प्राण' - इन्दौर (मध्यप्रदेश)