सदाचार की संस्कृति मेरी,
भेद मालूम है तुझको।
प्रेम प्रदर्शित कैसे कर दूँ?
लोक-लाज का डर मुझको।
प्रेम पथिक तो सब मिलते हैं,
पर प्रेम से ही बैर क्यूँ?
बदनाम बुरा पर बद अच्छा,
संसार में है ख़ैर क्यूँ?
बेशऊर है नाक कटाया,
दंडित करिए अब इसको।
प्रेम प्रदर्शित कैसे कर दूँ?
लोक-लाज का डर मुझको।
सदा ही रहा है मनभावन,
ह्रदय देश में आकर्षण।
प्रस्तर में भी उगते पौधे,
उठती हैं लहरें जिस क्षण।
रिश्तों के ताने-बाने में,
हाल सुनाऊँ मैं किसको?
प्रेम प्रदर्शित कैसे कर दूँ?
लोक-लाज का डर मुझको।
उलझकर जाति गोत्र धर्म में,
मानव जीवन सड़ता है।
तेरे बिन अब जीना दुष्कर,
फिर भी जीना पड़ता है।
कसाई है जग धरातलीय,
क्या मतलब है मुझसे सबको।
प्रेम प्रदर्शित कैसे कर दूँ?
लोक-लाज का डर मुझको।
संजय राजभर 'समित' - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)