संजय राजभर 'समित' - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
लोक-लाज का डर - गीत - संजय राजभर 'समित'
बुधवार, नवंबर 23, 2022
सदाचार की संस्कृति मेरी,
भेद मालूम है तुझको।
प्रेम प्रदर्शित कैसे कर दूँ?
लोक-लाज का डर मुझको।
प्रेम पथिक तो सब मिलते हैं,
पर प्रेम से ही बैर क्यूँ?
बदनाम बुरा पर बद अच्छा,
संसार में है ख़ैर क्यूँ?
बेशऊर है नाक कटाया,
दंडित करिए अब इसको।
प्रेम प्रदर्शित कैसे कर दूँ?
लोक-लाज का डर मुझको।
सदा ही रहा है मनभावन,
ह्रदय देश में आकर्षण।
प्रस्तर में भी उगते पौधे,
उठती हैं लहरें जिस क्षण।
रिश्तों के ताने-बाने में,
हाल सुनाऊँ मैं किसको?
प्रेम प्रदर्शित कैसे कर दूँ?
लोक-लाज का डर मुझको।
उलझकर जाति गोत्र धर्म में,
मानव जीवन सड़ता है।
तेरे बिन अब जीना दुष्कर,
फिर भी जीना पड़ता है।
कसाई है जग धरातलीय,
क्या मतलब है मुझसे सबको।
प्रेम प्रदर्शित कैसे कर दूँ?
लोक-लाज का डर मुझको।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर