मूल चुका ना पाओगे - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी | माँ पर कविता

तुम कितने भी
बड़े हो जाओगे,
पर मूल ना
चुका पाओगे।
तुम करो गलतियाँ हज़ार
पर माँ की
बददुआ,
कभी ना पाओगे।
माँ ने कितने
कष्ट सहे है,
तुम्हारी कुशल-क्षेम
पाने के लिए।
चाहे दिन
या हो रात,
सुबह हो या शाम,
तिल-तिल मरती
पर माँ के हाथ,
बढ़ते दुआ
देने के लिए।
माँ होती
ही ऐसी,
ममता से 
बड़ा न पाओगे।
तुम कितने भी 
बड़े हो जाओ,
पर मूल ना
चुका पाओगे।
पिता की तरह
नारियल
माँ नहीं बन पाती,
माँ लीची बन
कर रह जाती।
पुत्र कपूत
अगर हो तो भी,
पर माँ हमेशा
सपूत बोलकर
अपनाएगी।
ऐसी माँ
की अभिलाषाओं पर,
पानी फेर,
क्या तुम
सुखी रह पाओगे।
तुम कितने भी
बड़े हो जाओ
पर माँ का
मूल ना चुका पाओगे।
माँ की ममता 
के भावो को,
पढ़ा कब-कब है,
माँ की अनदेखी कर,
बातो को
झूठा मढ़ा जब-जब
आने वाली संतान,
तब तुम्हारी
करेगी उपेक्षा,
तब माँ को
कभी ना भूल पाओगे।
तुम कितने भी 
बड़े हो जाओ,
पर माँ का मूल 
ना चुका पाओगे।

रमेश चन्द्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

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