गोकुल कोठारी - पिथौरागढ़ (उत्तराखंड)
लक्ष्मीबाई - कविता - गोकुल कोठारी
शनिवार, नवंबर 19, 2022
विषय नहीं आज यह, वह नर थी या नारी थी,
लेकिन थी हाहाकारी, आदिशक्ति अवतारी थी।
मातृभूमि की आन पर जब भी बन आई है,
नर ही क्या यहाँ नारी भी लक्ष्मीबाई है।
युद्धभूमि में कौंध रही थी तड़ित दामिनी थी तलवार,
रिपु मस्तक का भेंट चढ़ाती, रणचंडी रण में साकार।
तितर-बितर दम्भी अंग्रेज, अब जान पर बन आई थी,
बंदूकों की गोली से जब तलवारें टकराई थी।
माँ दुर्गा कोई मिथक नहीं, वह सचमुच ही नारी थी,
आज फिरंगी देख रहे थे, कैसे उनपर भारी थी।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विषय
सम्बंधित रचनाएँ
सपथ - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
भारत का प्राकृतिक सौंदर्य - मनहरण घनाक्षरी छंद - राहुल राज
हूँ लाल इस माटी का - गीत - हिमांशु चतुर्वेदी 'मृदुल'
गणतंत्र तिरंगा प्यारा है - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
अपना हिंदोस्ताँ - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा 'सूर्या'
युवा आह्वान गीत - ताटंक छंद - अभिषेक श्रीवास्तव 'शिवा'
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर