लक्ष्मीबाई - कविता - गोकुल कोठारी

विषय नहीं आज यह, वह नर थी या नारी थी,
लेकिन थी हाहाकारी, आदिशक्ति अवतारी थी।
मातृभूमि की आन पर जब भी बन आई है,
नर ही क्या यहाँ नारी भी लक्ष्मीबाई है।
युद्धभूमि में कौंध रही थी तड़ित दामिनी थी तलवार,
रिपु मस्तक का भेंट चढ़ाती, रणचंडी रण में साकार।
तितर-बितर दम्भी अंग्रेज, अब जान पर बन आई थी,
बंदूकों की गोली से जब तलवारें टकराई थी।
माँ दुर्गा कोई मिथक नहीं, वह सचमुच ही नारी थी,
आज फिरंगी देख रहे थे, कैसे उनपर भारी थी।

गोकुल कोठारी - पिथौरागढ़ (उत्तराखंड)

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