एक ठिगना पौधा - कविता - संजय कुमार चौरसिया 'साहित्य सृजन'

एक विशालकाय तरु के नीचे,
ख़ुद उसकी पत्तियों से ढका हुआ,
पृथ्वी का अर्द्ध छिपा भाग,
जिसको देखते भावों में एक
अभिव्यक्ति का नया अवतरण
सीधे करता था जीवन की अभिलाषाओं से भेंट,
जैसे पृथ्वी से नए बीज का
नया अंकुरण जो होता है
सबसे अलग और ठिगना,
पर नहीं पता उसकी प्रजाति का
प्रकृति नहीं करती भेदभाव
ना पालन-पोषण में विरोध।
प्रौढ़ हो कर जाए फलों से कूच,
किसको मालूम था ठिगने का स्वरूप।

संजय कुमार चौरसिया 'साहित्य सृजन' - उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

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