एक पल के लिए भी मुख मोड़ती नहीं - ग़ज़ल - रज्जन राजा | ग़रीबी पर ग़ज़ल

अरकान : मफ़ऊलु फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
तक़ती : 221 2121 1221 212

एक पल के लिए भी मुख मोड़ती नहीं,
नाता हमारा सुख से कभी जोड़ती नहीं।

कई पीढ़ियाँ क़ुर्बान की हमने इसके वास्ते,
फिर भी ग़रीबी है कि हमें छोड़़ती नहीं।

तपते हैं श्रम की भट्टी में दिन रात हम मगर,
छोटी पड़ती कमाई बदन ओढ़ती नहीं।

बहाके ख़ूँ पसीना मिलें दो रोटी बामुश्किल,
ये भूख क्यों रिश्ता हमसे तोड़ती नहीं।

रज्जन राजा - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos