इश्क़ जब बेहिसाब होता है - ग़ज़ल - शमा परवीन

अरकान : फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
तक़ती : 2122  1212  22

इश्क़ जब बेहिसाब होता है,
हिज्र भी लाजवाब होता है।

तेरा चेहरा है बज़्म में ऐसा,
जैसे गुल में गुलाब होता है।

बात चुभती है उसकी अच्छी भी,
जिसका लहजा ख़राब होता है।

माँ के दामन को याद करती हूँ,
सर पे जब आफ़ताब होता है।

जितना औरों पे तंज़ करता है,
उतना वो बेनक़ाब होता है।

प्यार से देखता है जब कोई,
रुख़ पे दिलकश शबाब होता है।

दिलपे लगती है बात जब उसकी,
आँसुओं से ख़िताब होता है।

बज़्म-ए-उल्फ़त में आज भी ऐ 'शमा',
आपका इंतेख़ाब होता है।

शमा परवीन - बहराइच (उत्तर प्रदेश)

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