बेटियाँ मन की सच्ची - कुण्डलिया छंद - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'

गीता के संरक्षकों, बन बनिए जयचंद।
कर बेटी के चमन में, दख़लंदाज़ी बंद॥

दख़लंदाज़ी बंद, बेटियाँ मन की सच्ची।
शुरुआती है दौर, अभी भी लगती बच्ची॥

कहें बेधड़क बंधु, दिलों रख मन परिणीता।
प्रेम प्यार अनुराग, पढ़ा कर पढ़िए गीता॥

भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क' - शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos