संदेश
रेगिस्तान - कविता - सुनील कुमार महला
मैं थार बोल रहा हूँ गर्मियों में उबलती रेत, सर्दियों में शून्य से नीचे तापमान शुष्क लेकिन विशाल तरंगित मेरी बालुका सतह चाँदी की रेखाओ…
क़दम-क़दम - कविता - ऊर्मि शर्मा
फ़ुर्सते-पाबन्दीयाँ रास्ते-पगडंडियाँ। क्षितिज को छूती मंज़िलें, हौसलो के इम्तिहान। हर तरफ़ बिछा कुहासा, हादसे क़दम-क़दम। फूल काँटें दरमिय…
आज क्रांति फिर लाना है - कविता - मोहित त्रिपाठी
डूब रही जो शक्ति अंधकार के घेरों में, फँसती जा रही जो कलि काल के फेरों में, उसको जगा पुनः ज्योति से ज्वाला बनाना है आज क्रांति फिर…
यह दुनिया एक भ्रम है - कविता - प्रशान्त 'अरहत'
हम जिस दुनिया में रहते हैं, वो हक़ीक़त नहीं है, एक भ्रम है। हम एक पूरे भ्रम और अधूरे सच के बीच जी रहे हैं, जो भ्रम किसी भी समय पूरा हो स…
सुनो प्रिय - कविता - बिंदेश कुमार झा
यह जो तुम्हारा मेरा प्रेम है, यह काग़ज़ों तक सीमित नहीं। पुष्पों के सुगंध से भी परिभाषित नहीं॥ यह जो तुम्हारा समर्पण है, प्रशंसा इसके तु…
मीत तुम मेरे - गीत - राकेश कुशवाहा राही
मीत तुम मेरे गीत बन गए, प्रीत की तुम रीत बन गए। जब भी मै अकेला रहा हूँ कभी, अंधेरों से डरकर छुपा हूँ कही, मीत तुम मेरे दीप बन गए। समंद…
चमक - कविता - संजय राजभर 'समित'
न ठनक न खनक न सनक बस चुपचाप धैर्य से शांति से अनवरत सही दिशा में होश और जोश के साथ अपने लक्ष्य की ओर आत्मविश्वास से अपना कर्…
उम्मीद - कविता - विजय कुमार सिन्हा
एक सुंदर भविष्य की आश में मात-पिता बड़े शहर में छोड़ने जाते हैं अपने बच्चों को। लगता है अपनी साँसे हीं छोड़े जा रहे हैं। पर यह विछड…
झारखण्ड के अमर शहीदों को जोहार : अमर शहीद रघुनाथ महतो - धारावाहिक आलेख - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'
अमर शहीद रघुनाथ महतो जन्म - 21 मार्च, 1738 मृत्यु - 5 अप्रैल, 1778 तत्कालीन बंगाल के मानभूम अर्थात छोटानागपुर के जंगलमहल जिले के अंतर्…
जिज्ञासा - कविता - रवि तिवारी
पहली बार तुमसे मिलते हुए मैंने नहीं मिलाया हाथ, तुम्हें जानने में नहीं की कोई जल्दबाज़ी। पहली बार मिलने पर मैंने बचाए रखी तुमसे दूसरी …
आ चाँद तुझे मैं निहारा करूँ - कविता - साधना साह
आ चाँद तुझे मैं निहारा करूँ, बीती बतियाँ मैं तुझसे साझा करूँ। सखि देखो सँवर कर पूर्णिमा का चाँद फिर आया, अम्बर जैसे आज धरती पर उतर आया…
अररररे! ये क्या कर आए तुम - ग़ज़ल - रज्जन राजा
अरकान : फ़ऊलुन मफ़ऊलु फ़ऊलुन फ़ा तक़ती : 122 221 122 2 अररररे! ये क्या कर आए तुम, उजाड़ कर धूप के साए तुम। इक अपना घर बनाने के वास्ते,…
मैं बुद्ध होना चाहता हूँ - कविता - इमरान खान
मैं बुद्ध होना चाहता हूँ, मनुष्य की पीड़ा का। कि वक़्त और वक़्त के दो टुकड़ों के बीच अतीत और वर्तमान की खाल पर, आदिम युगों सा, मैं मनुष्…
दशरथ माँझी - कविता - गोकुल कोठारी
फड़कती भुजाओं का ज़ोर देखा, क्या ख़ूब बरसे घनघोर देखा। कर्मों की बहती दरिया देखी, उससे निकलती नई राह देखी। इतिहास रचने की चाह देखी, माँझ…
हे हिन्द की धरोहर! - कविता - राघवेंद्र सिंह | पण्डित जवाहरलाल नेहरू पर कविता
हे रत्न! भूमि भारत, हे हिन्द की धरोहर! हे हिन्द स्वप्नदृष्टा! हे हिन्द के जवाहर! सच्चे सपूत तुम थे, इस हिन्द वाटिका के। तुम ही यहाँ थे…
बिरसा मुण्डा - कविता - रमाकान्त चौधरी
क्रांति की अमिट कहानी था। वह वीर बहुत अभिमानी था। डरा नहीं वह गोरों से, लहज़ा उसका तूफ़ानी था। जल जंगल धरती की ख़ातिर, जिसने सबकुछ वारा थ…
झारखण्ड के अमर शहीदों को जोहार : अमर शहीद बुधू भगत - धारावाहिक आलेख - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'
15 नवम्बर, 2022 को झारखंड 22 साल का हो जाएगा। 'झारखण्ड स्थापना दिवस' का पावन दिन आदिवासी नेता बिरसा मुंडा की जयंती के रूप में …
वक़्त ठहरा कब है - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
वक़्त ठहरा कब है बता मानव, जीवन मूक खड़ा रह जाता है। अबाधित दुरूह विघ्न से ऊपर, वायुगति कालचक्र बढ़ जाता है। शाश्वत प्रमाण काल ब्रह्…
आज़ादी - कविता - ऊर्मि शर्मा
कई बरसों से था वो साथ मेरे। मेरी खिड़की से मेरे पास आना, हमेशा के लिए, मेरा साथी हो जाना। दिन में घर से निकल, शाम होते ही लौट आना, ब…
तुम्हारी प्रेयसी की त्रासदी - पत्र - लक्ष्मी सिंह
मुझे उसके जिस्म की तलब तो नहीं थी लेकिन मैं उसके फेंके हुए उस सिगरेट के टुकड़े को छूना चाहती थी जो उसकी उँगलियों से लिपटकर उसके होठों …
अंतहीन आकृतियाँ - कविता - प्रवीन 'पथिक'
अंधेरी रात में, घने जंगल से गुज़रता हुआ; एक शराबी को, गीदड़ों के गुर्राने की आवाज़; भयानक हिलती हुई आकृति; औ झिंगुरों की कर्णभेदी स्वर; …
ठग - कविता - सतीश शर्मा 'सृजन'
क़दम-क़दम जीवन के प्रति पग, छल करते मिल जाते हैं ठग। जग आए तो मन था कोरा, कुछ भी न था तोरा मोरा। पहली ठगी किया पलना लोरी, माता पिता संग …
मज़दूर - कविता - सुनील कुमार महला
मज़दूर पर कविता लिखना टेढ़ी खीर है कवि मज़दूर जितनी मेहनत नहीं करता लेकिन यह कटु सत्य है सच्चा मज़दूर मेहनत करता है मेहनत, ईमानदारी की खा…
मेरी बेटी - प्रकृति रानी - कविता - डॉ॰ विजयलक्ष्मी पाण्डेय
कर रही भूमि का आराधन प्रकृति रानी, मैं बैठी उपवन में देख रही मंद स्मित! भोर बेला में धरती का अनुपम शृंगार, गुलमोहर पुष्पों की लाल सुर्…
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