अररररे! ये क्या कर आए तुम - ग़ज़ल - रज्जन राजा

अरकान : फ़ऊलुन मफ़ऊलु फ़ऊलुन फ़ा
तक़ती : 122  221  122  2

अररररे! ये क्या कर आए तुम,
उजाड़ कर धूप  के साए तुम।

इक अपना घर बनाने के वास्ते,
किसी को बेघर कर आए तुम।

गिराकर आशियाना बेज़ुबानों का,
बिलकुल भी नहीं शर्माए तुम।

इंसाँ हो मगर इंसानियत बाक़ी नहीं,
मानवता से मानव हो पराए तुम।

रज्जन राजा - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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