यह जो तुम्हारा मेरा प्रेम है,
यह काग़ज़ों तक सीमित नहीं।
पुष्पों के सुगंध से भी परिभाषित नहीं॥
यह जो तुम्हारा समर्पण है,
प्रशंसा इसके तुल्य नहीं।
इसमें ना तो हार इसमें जीत नहीं॥
मैं तुमसे भौतिक रूप से ही दूर हूँ,
पर हृदय से क़रीब कहीं।
पा लेना प्रतिक्षण मुझे खो ना जाऊँ कहीं॥
बिन्देश कुमार झा - नई दिल्ली