मीत तुम मेरे गीत बन गए,
प्रीत की तुम रीत बन गए।
जब भी मै अकेला रहा हूँ कभी,
अंधेरों से डरकर छुपा हूँ कही,
मीत तुम मेरे दीप बन गए।
समंदरो ने जब भी पुकारा मुझे,
लहरों ने जब भी डुबाया मुझे,
मीत तुम मेरे द्वीप बन गए।
काँटें चुभे है जब-जब पाँव में मेरे,
हाथ थामें है तुमने ही बढ़कर मेरे,
मीत तुम मेरे प्रीत बन गए।
मीत तुम मेरे गीत बन गए
प्रीत की तुम रीत बन गए।
राकेश कुशवाहा राही - ग़ाज़ीपुर (उत्तर प्रदेश)