क़दम-क़दम - कविता - ऊर्मि शर्मा

फ़ुर्सते-पाबन्दीयाँ
रास्ते-पगडंडियाँ।
क्षितिज को छूती मंज़िलें, 
हौसलो के इम्तिहान। 
हर तरफ़ बिछा कुहासा,
हादसे क़दम-क़दम।
फूल काँटें दरमियाँ,
बन घटा सी बिजुरिया।
मेघ सा कर जतन,
रास्ते खिल उठे,
मंज़िलें क़रीब आ
क़दम-क़दम। 

ऊर्मि शर्मा - मुंबई (महाराष्ट्र)

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