संदेश
मुक्तिबोध - कविता - रेखा श्रीवास्तव
बन्द आँखें, मद्धम साँसें, दम तोड़ती उसकी आहें, वो डूबी कुछ विचारों में, वो खोई दिल के तूफ़ानों में। वो तो बस देख रही थी, होकर बोझिल …
समय का सच - कविता - डॉ॰ रवि भूषण सिन्हा
समय तो समय है, समय को कहाँ कोई रोक पाता है। समय, देखते ही देखते, समय पर आगे बढ़ जाता है।। दुनिया का हो कोई राजा या रंक, या हो दुनिया…
अभिनंदन मेहमान का - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
मातु पिता जयगान हो, जय गुरु जय मेहमान। भक्ति प्रेम जन गण वतन, ईश्वर दो वरदान।। अभिनंदन मेहमान का, हो स्वागत सम्मान। मधुर भाष मुख हास …
झलकारी बाई - कविता - रमाकान्त चौधरी
वो झाँसी की सैनानी। जिसने हार कभी न मानी। निडर और साहसी नारी। नाम था उसका झलकारी। पल में धूल चटाई उसको, जिसने समझा उसे अनाड़ी। बा…
जो भी सीने में छुपा रक्खा है - ग़ज़ल - अबरार अहमद
अरकान : फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन तक़ती : 2122 1122 22 जो भी सीने में छुपा रक्खा है, सब इस दिल को बता रक्खा है। हमको मालूम था तुम आओगे…
मेरे हमराज़ हो तुम - गीत - पारो शैवलिनी
हमसफ़र हमनसीं हमदम मेरे हमराज़ हो तुम मेरी साँसों में बसी मेरी ही आवाज़ हो तुम। तेरे ही दम से है बहार मेरी ज़िंदगी में तू है शामिल मे…
वो प्यारा सा कुआँ - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
अब तो मृतप्राय हो चला जो सदियों तक जीता था, गाँव का वो प्यारा सा कुआँ जहाँ हर कोई पानी पीता था। पैदल चलने वाले राही देख कुआँ रुक जाते…
ऐसा मैं नन्हा कलाम हूँ - बाल गीत - भगवत पटेल 'मुल्क मंजरी'
दुनियाँ मुझको याद करे ऐसा मैं नन्हा कलाम हूँ। खेल, खिलौने, कन्चे, गेंद, मुझको लगते प्यारे। फूलों के संग तितली रानी, भौरे कितने न्यारे।…
पथ - कविता - अर्चना कोहली
जीवन-पथ पर शूल संग कंटक भी मिलते हैं, ख़ुशी संग ग़म-सागर भी पार करने पड़ते हैं। पल-पल संघर्ष-चक्रव्यूह पथ हमारा रोकते हैं, परिश्रम-प्रस्…
समंदर कहाँ तक हमें अब उछाले - ग़ज़ल - अरशद रसूल
अरकान: फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन तक़ती : 122 122 122 122 समंदर कहाँ तक हमें अब उछाले, नहीं कोई तिनका जो आकर बचा ले। मुझे कर दिया तीरगी के…
पता तुम्हारा - कविता - धीरेन्द्र पांचाल
सर्द हवाएँ मुझसे पूछेंगी क्या बोलूँगा, पता तुम्हारा किस पन्ने पर लिख लिख भेजूँगा। लिख दूँगा मैं तन्हा खाली यादें उनकी हैं, दीवारों पे …
मुझको हक़ दें दो - कविता - अंकुर सिंह
अपने दिल का हाल सुनाऊँ, मुझे अपना ऐसा पल दे दो। बिन हिचक कहें अपनी बातें। ऐसा तुम मुझको हक़ दें दो।। रहें संग जब हम दोनों, हम में प्रेम…
छवि (भाग २०) - कविता - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'
(२०) बौद्ध पंथ कहता है जग से, मानव मात्र समान है। बुद्ध बनो अंतस से मानव, दुख का यही निदान है।। हृदय-कलश में भर लो करुणा, प्रेम-दया सद…
नदी की कहानी - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
कौतुकी हुई है नदी की कहानी। उद्गम से शुरू फिर चौड़ा है पाट। मिलते हैं रस्ते में नदिया औ घाट।। चूमें है चश्म मौजों की रवानी। काटा है रास…
उफ़्फ़ ये आदमी - कविता - मनोज यादव
परंम्परा नई-नई बना रहा है आदमी, असत्य तथ्य सत्य है बता रहा है आदमी। पात्र मात्र भ्रान्ति है कुपात्र ही सर्वत्र है, असत्य की बुनियाद पर…
आह भरते रहे ग़म उठाते रहे - ग़ज़ल - अभिषेक मिश्र
आह भरते रहे ग़म उठाते रहे, जिंदगी भर उन्हें हम मनाते रहे। हमने की ही नहीं बद गुमानी कभी, बस यही सोच कर छटपटाते रहे। बात थी इश्क़ की इसलि…
रोटी - कविता - डॉ॰ सिराज
ठेले पर चूल्हा चूल्हे पर रोटी रोटी की क़ीमत मात्र दस रूपए सड़क किनारे बेच रही थी एक औरत। कभी बिक जाती हैं तो कभी रह जाती हैं रोटियाँ..…
सैनिक का पत्र पत्नी के नाम - गीत - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
समर भूमि के घोर तुमुल से, प्रिये तुम्हें लिखता पाती। मातृभूमि का एक विश्वजित, घात लगा लेटा छाती।। तुम मेरी आराध्य भवानी, मेरा तो ताण्ड…
एक नज़र तू देखे अगर - कविता - राजकुमार बृजवासी
एक नज़र तू देखे अगर, बेक़रार दिल को करार आ जाए। मन में खिल उठे प्यार के सुमन, सुनी पड़ी बगिया में बहार आ जाए। एक नज़र तू... किस बात का गि…
बसेरा - कविता - नेहा श्रीवास्तव
बीत रहा था एक विहग सुषमय जीवन उड़ जाता था दूर गगन में स्वप्न सँजोए जीवन उसको लगता सुन्दर, सरस, मनोहर हरा भरा वन नील गगन और सुन्दर उपवन…
रौशनी घायल पड़ी है आजकल - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन तक़ती : 2122 2122 212 रौशनी घायल पड़ी है आजकल, हर नज़र में बेबसी है आजकल। नाख़ुदा तो साफ़ बच जाता है द…
हम हार नहीं सकते - कविता - महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता'
जब तक रगों में है स्वदेश प्रेम, नारी में लक्ष्मी और नर में भगत सिंह रमते। उम्मीदों में है हौसलों का जज़्बा, तब तक हम हार नहीं सकते। …
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे | Kabir Das Dohe
सब जग सूता नींद भरि, संत न आवै नींद। काल खड़ा सिर ऊपरै, ज्यौं तौरणि आया बींद।। जिस मरनै थै जग डरै, सो मेरे आनंद। कब मरिहूँ कब देखिहूँ,…
छवि (भाग १९) - कविता - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'
(१९) औरों को जीने दो सुख से, ख़ुद भी सुख पूर्वक जियो। पंथ यहूदी कहता जग से, ज्ञान-सुधा आसव पियो।। तोरा जीवन की पुस्तक है, यह जीवन आधार …
मुक़द्दस घड़ी हैं 17 - कविता - कर्मवीर सिरोवा
सर्द हवा का सुरूर, धनक की ये ग़ज़ब पैहन छाई हैं, आँखों में चमक लबों पे गीत वाह क्या बहार आई हैं। मिरे तसब्बुरात में जो तितली उड़ रही थी …
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