छवि (भाग १९) - कविता - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'

(१९)
औरों को जीने दो सुख से, ख़ुद भी सुख पूर्वक जियो।
पंथ यहूदी कहता जग से, ज्ञान-सुधा आसव पियो।।
तोरा जीवन की पुस्तक है, यह जीवन आधार है।
हज़रत मूसा ने इस जग में, किया बड़ा उपकार है।।

तोरा सिखलाता मानव को, मिलजुलकर जग में रहो।
परमेश्वर से प्रीत लगाओ, झूठ कदापि नहीं कहो।।
कार्य करो डटकर दिन-रैना, एक दिवस विश्राम लो।
व्यर्थ कभी भी परमात्मा का, यहूदियों! तुम नाम लो।।

मातु-पिता का आदर-सेवा, ईश्वर सेवा जान लो।
प्रीत बढ़ाओ पड़ोसियों से, साथी को सम्मान दो।।
दान-पुण्य जी भर के कर लो, दूर रहो व्यभिचार से।
भरो सदा निज हृदय-कलश को, प्रेम-दया सुविचार से।

प्रेम करो निज मातृभूमि से, गैर-धर्म को मान दो।
बनो सहिष्णु दरख़्त सरीखा, सद-चिंतन पर ध्यान दो।।
यही धर्म है यहूदियों का, जन-मानव संज्ञान लो।
धर्म निभाओगे तुम कैसे? अपने मन में ठान लो।।

डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी' - गिरिडीह (झारखण्ड)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos