आह भरते रहे ग़म उठाते रहे - ग़ज़ल - अभिषेक मिश्र

आह भरते रहे ग़म उठाते रहे,
जिंदगी भर उन्हें हम मनाते रहे।

हमने की ही नहीं बद गुमानी कभी,
बस यही सोच कर छटपटाते रहे।

बात थी इश्क़ की इसलिए चुप रहे,
इस तरह प्यार उनसे निभाते रहे।

हमने देखा उन्हें ग़ैर की अंजुमन
वो हमें देख कर मुँह छिपाते रहे।

उनको पाने की हरदम तमन्ना रही,
उनकी गलियों में हम आते जाते रहे।

अभिषेक मिश्र - बहराइच (उत्तर प्रदेश)

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