पथ - कविता - अर्चना कोहली

जीवन-पथ पर शूल संग कंटक भी मिलते हैं,
ख़ुशी संग ग़म-सागर भी पार करने पड़ते हैं।
पल-पल संघर्ष-चक्रव्यूह पथ हमारा रोकते हैं,
परिश्रम-प्रस्तर से नवीन पथ खोजने होते हैं।।

माना पथ रोकने बाधाओं के झंझावात खड़े हैं,
तोड़ने को हम सबका धैर्य-मनोबल वे अड़े हैं।
दुर्गम-पथरीली डगर देखकर रुक न तू जाना,
हिम्मत-विश्वास से निज परचम लहरा देना।।

अंतर्मन में लक्ष्य का बारीक रेखाचित्र होता,
पल-पल नव ख़्वाबों के सुनहरे बीज बोता।
संघर्षों की भीति से टकराकर जो न बिखरते,
वही तो नव पथ बना सबके प्रेरणास्रोत बनते।।

घोर अंधियारे में भी आशा-चिराग जलते हैं,
विजय पथ पर जाने का हौसला देते रहते हैं।
पथ-प्रदर्शक बनकर जो प्रेरित करते रहते हैं,
वही अनमोल सीख से भला हमारा करते हैं।।

हौसले से जिसने दुर्गम पथ को सुगम किया,
लावा उगलते ज्वालामुखी भी पार कर लिया।
वही नई राह बना कल्याण सबका कर जाते,
कर्मवीर बन मान-सम्मान सभी का हैं पाते।।

आँधी-तूफ़ान में नौका भी राह से भटक जाती,
हिम्मत-विश्वास से ही किनारे पर पहुँच पाती।
ऊबड़-खाबड़ रास्तों से नदिया गुज़रती रहती,
संकट समस्त पार करके सिंधु में जा मिलती।।

मार्ग में बिछे कंटकों से लहूलुहान मनुज होता,
बिना पार किए न मिलता है सफलता सोता।
बिना चले भला मंज़िल को कोई कैसे पाएगा,
शैल को तोड़े बिन पथ भला कैसे बन जाएगा।।

अर्चना कोहली - नोएडा (उत्तर प्रदेश)

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