रोटी - कविता - डॉ॰ सिराज

ठेले पर चूल्हा
चूल्हे पर रोटी
रोटी की क़ीमत 
मात्र दस रूपए
सड़क किनारे
बेच रही थी एक औरत।
कभी बिक जाती हैं
तो कभी रह जाती हैं
रोटियाँ...!
बची हुई रोटियों के साथ
आँसू भी लौटते हैं घर
अपने एक छोटे बच्चे के साथ।

डॉ॰ सिराज - बिदर (कर्नाटक)

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