पता तुम्हारा - कविता - धीरेन्द्र पांचाल

सर्द हवाएँ मुझसे पूछेंगी क्या बोलूँगा,
पता तुम्हारा किस पन्ने पर लिख लिख भेजूँगा।
लिख दूँगा मैं तन्हा खाली यादें उनकी हैं,
दीवारों पे पहरा दिल की रातें उनकी हैं।
कह दूँगा तुम ख़ुद ही जाओ ढूँढ़ो जानो तो,
खो ना जाना बीच भंवर में ख़ुद पहचानो तो।
कह दूँगा मैं फ़िक्र करो तुम ख़ुद के हालत की,
क्यों करते हो झूठे तुम भी बात वकालत की।।

सम्भव कैसे लिखना और मिटाना तेरी बात,
कितने सावन देखे होंगे आँखों की बरसात।
कैसे कह दूँ साथ तुम्हारा अम्बर झूठा है,
इस धरती के सिरहाने से बादल रूठा है।
क्यों करना है बातें तुमको उस बेगाने से,
छूने को दिल करता तेरा लाख बहाने से।
पिट रहे हो दरवाज़े तुम बन्द अदालत की,
क्यों करते हो झूठे तुम भी बात वकालत की।।

धीरेंद्र पांचाल - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

Join Whatsapp Channel



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos