अरकान: फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
तक़ती : 122 122 122 122
समंदर कहाँ तक हमें अब उछाले,
नहीं कोई तिनका जो आकर बचा ले।
मुझे कर दिया तीरगी के हवाले,
मुबारक तुम्हें आज सारे उजाले।
नहीं ज़िंदगी पर कोई जोर अपना,
ख़ुदा की अमानत कभी भी बुला ले।
मिलें चार काँधे घड़ी आख़िरी हो,
तअल्लुक़ ज़माने से इतना बना ले।
यही आरज़ू है अभी तक अधूरी,
कभी रूठ जाऊँ मुझे वह मना ले।
ज़माना हमेशा यह बेहतर लगेगा,
निगाहें जो ख़ुद के गिरेबाँ पे डाले।
पतंगे यहाँ प्यार की कम नहीं है,
कभी मैं उड़ा लूँ कभी तू उड़ा ले।
अरशद रसूल - बदायूं (उत्तर प्रदेश)