उफ़्फ़ ये आदमी - कविता - मनोज यादव

परंम्परा नई-नई बना रहा है आदमी,
असत्य तथ्य सत्य है बता रहा है आदमी।

पात्र मात्र भ्रान्ति है कुपात्र ही सर्वत्र है,
असत्य की बुनियाद पर चल रहा है आदमी।

उचित का मान भंग कर अनुचित बना है आदमी,
अनीति को अब नीतिगत बना रहा है आदमी।
 
सदाचरण तो भूल है कदाचरण यथार्थ है,
परिभाषाएँ नई-नई रच रहा है आदमी।

चरित्रवान दुष्चरित्र, चरित्रभ्रष्ठ महान है,
किस सदी की, बिगड़ी नज़ीर दे रहा है आदमी।

मनोज यादव - मजिदहां, समूदपुर, चंदौली (उत्तर प्रदेश)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos