छवि (भाग २०) - कविता - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'

(२०)
बौद्ध पंथ कहता है जग से, मानव मात्र समान है।
बुद्ध बनो अंतस से मानव, दुख का यही निदान है।।
हृदय-कलश में भर लो करुणा, प्रेम-दया सद्भावना।
निष्काम कर्म सुखदायी है, दुख का जड़ है कामना।।

गौतम बुद्ध शाक्यमुनि ज्ञानी, ज्ञान दिया संसार को।
प्यार लुटाया फूलों पर भी, गले लगाया ख़ार को।।
अष्टांग मार्ग प्रतिपादित कर, आलोकित जग को किया।
निर्वाण प्राप्त करने की विधि, लोगों को बतला दिया।।

बनो संयमी और अहिंसक, बैर किसी से मत करो।
बचे रहो मद काम-भोग से, औरों की पीड़ा हरो।।
दोष न देखो कभी किसी का, निज उर अवलोकन करो।
कर्म करो जी भर कर जग में, स्वयं नाव अपना तरो।।

जातिवादिता कभी न करना, आडंबर कदापि नहीं।
उसी मार्ग पर चलो निरंतर, जो पथ है बिल्कुल सही।
बुद्ध बनो ऐ दुनियावालों, स्वयं चरित अपना गढ़ो।
पाठ बौद्ध दर्शन का पढ़कर, जीवन में आगे बढ़ो।।

डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी' - गिरिडीह (झारखण्ड)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos