सैनिक का पत्र पत्नी के नाम - गीत - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'

समर भूमि के घोर तुमुल से,
प्रिये तुम्हें लिखता पाती।
मातृभूमि का एक विश्वजित,
घात लगा लेटा छाती।।

तुम मेरी आराध्य भवानी,
मेरा तो ताण्डव नर्तन।
जितनी पूजा करूँ तुम्हारी,
उतना ही तो अरि का मर्दन।।
जीवन का संग्राम रचा है,
सुमुखि तुम्हारे ही तो बल।
पीछे कभी न हटना सैनिक,
कहती वह चितवन चंचल।।

स्वप्न विराम चल रहे होते,
आँचल विजन डुला जाती।

मेरे मंदिर का दीपक तुम,
मेरे श्वासों की सिहरन।
अधर तुम्हारा जप करते हैं,
अर्घ्य चढ़ाते हैं लोचन।।
होम कर रहे आयुध मेरे,
यही अक्षय गति वर अर्चन।
मेरी ज्योति तुम्हारा प्रहरी,
बंधे न मायावी बन्धन।।

ऐसा पत्र प्रियतमे भेजो,
लौह पुरुष बन जाए थाती।

अपने मन के इस विराट् से,
पढ़ लेना भाषा गोरी।
दिवा स्मरण करते रहना,
निशा सुनाऊँगा लोरी।।
मैं तो गिरि घाटी शूलों पर,
आज लिख रहा हूँ इतिहास।
शोणित धार रुण्ड मुण्डों को,
पाट रहा है यह आकाश।।

यदि शहीद होने का गौरव,
दीप जलाना घृत बाती।

शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)

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