कौतुकी हुई है
नदी की कहानी।
उद्गम से शुरू
फिर चौड़ा
है पाट।
मिलते हैं
रस्ते में
नदिया औ घाट।।
चूमें है चश्म
मौजों की रवानी।
काटा है
रास्ते में
पहाड़ों को।
सुख दुख
अपना बताती
झाड़ों को।।
है नदी के किनारे
शाम सुहानी।
अविनाश ब्यौहार - जबलपुर (मध्य प्रदेश)
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