संदेश
सूर्य की धरती - कविता - मनस्वी श्रीवास्तव
मैं धरती तू सूर्य मेरा... तेरे "प्रकाश" से चमक रही, नित हरित दूब सी महक रही, विघ्नों के विराम अवसर पर, शरद सा शीतल हुआ सवेरा…
ज़ख़्म इतने मिल चुके हैं तितलियों से - ग़ज़ल - अरशद रसूल
अरकान: मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन तकती: 1222 1222 1222 1222 ज़ख़्म इतने मिल चुके हैं तितलियों से, डर नहीं लगता हमें अब आँधिय…
उसे नहीं पसंद लकीरों पर चलना - कविता - अबरार अहमद
उसे नहीं पसंद... किसी भी लकीर के पीछे चलना, समझ और नासमझी की परिभाषा में उलझना, सही और ग़लत के गुणा भाग में जीवन का रस छोड़ देना। उस…
प्रदूषण - कविता - डॉ॰ उदय शंकर अवस्थी
जिधर देखिए प्रदूषण प्रदूषण, धरती वहीं आसमाँ भी वही, चाँद तारे सूरज भी वही, हवा वो मगर कहाँ खो गई? भूल हमसे कहाँ हो गई? नदियाँ वही आज न…
महापर्व छठ पूजा - कविता - नंदिनी लहेजा
कार्तिक मास की शुक्ल षष्ठी को, मनाते छठ का व्रत महान। सुख समृद्धि का दाता है और, दे निःसंतानों को संतान। प्रियवंद राजा बड़ा था व्याकुल,…
कवन सुगवा मार देलस ठोरवा - लोकगीत - आशीष कुमार
कवन सुगवा मार देलस ठोरवा, ए रामा गजब भइले ना। कि आहो रामा सुगवा जुठार देलस केरवा, ए रामा गजब भइले ना। कतना जतनवा से भोगवा बनइनी, ए राम…
जो मन कहता - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'
अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन तक़ती : 22 22 22 22 बंदिश में जीना, मरना है, फिर क्यों बंदिश से डरना है। सोच लिया है इसीलिए अब, जो म…
हृदय परिवर्तन - कहानी - अंकुर सिंह
"अच्छा माँ, मैं चलता हूँ ऑफ़िस आफिस को लेट हो रहा है। शाम को थोड़ा लेट आऊँगा आप और पापा टाइम से डिनर कर लेना।" अंकित ने ऑफ़ि…
समरस जीवन सहज हो - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
अरुणिम आभा भोर की, खिले प्रगति नवयान। पौरुष परहित जन वतन,सुरभित यश मुस्कान।। नवयौवन नव चिन्तना, नूतन नवल विहान। नव उमंग सत्पथ रथी, बढ़…
खीर में पड़ गया नमक हो ज्यों - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त
अरकान : फ़ाइलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन तक़ती : 212 212 1222 खीर में पड़ गया नमक हो ज्यों, ऐसी बेस्वाद बात कर दी क्यों। आप भी सच्चे, बात भी सच्…
अपनी ढपली अपना-अपना राग - कविता - डॉ॰ मीनू पूनिया
सुखा फूल मुरझा कर पड़ा जो सड़क पर, किसी को लगे गंध तो किसी को पराग। आज सब हैं अपनी मर्ज़ी के मालिक, सबकी अपनी ढपली अपना-अपना राग। सफ़ेद …
मैं बोझ नहीं हूँ - कविता - गणेश भारद्वाज
मैं बोझ नहीं हूँ भाग्य लेकर आई हूँ, ममता की मूर्त मैं कुदरत की जाई हूँ। मेरे आने से आँगन तेरा महकेगा, मन उपवन का हर एक कोना चहकेगा। का…
बरहम हुई हैं नज़रें मुझसे जो मेहरबाँ की - ग़ज़ल - अनिकेत सागर
अरकान : मफ़ऊलु फ़ाइलातुन मफ़ऊलु फ़ाइलातुन तक़ती : 221 2122 221 2122 बरहम हुई हैं नज़रें मुझसे जो मेहरबाँ की, हालत ख़राब कर दी है मेरे…
राम : हमारी आत्मा - कविता - डॉ॰ गीता नारायण
राम... राम... और राम! सब वहीं पर विराम। जहाँ राम नही वहाँ कैसा विश्राम! चाहे जितना आगे जाऐं लौटकर आना होगा, हर इंसान को अंत में राम म…
गुलमोहर - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
गुलमोहर मानो स्वर्ग का फूल! लबालब भरा है पराग! खुले मधुमक्खी के भाग! मधुका का छत्ता रहा है झूल! धधके अंगार सा रंग! खिले हैं मधुऋतु क…
ख़्वाब मन में कई पल गए - ग़ज़ल - नागेन्द्र नाथ गुप्ता
अरकान : फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन तक़ती : 212 212 212 ख़्वाब मन में कई पल गए, तेरे आने से ग़म गल गए। वक़्त पर साथ तेरा मिला, तीर नैनो से वो च…
संसार ने दिया क्या? - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
ये सौभाग्य हमारा है कि हम इस संसार में आए, ख़ुशियों के सूत्रधार बने रिश्तों के आयाम बुने। पर हमनें संसार को क्या दिया शायद ही सोच पाए,…
पगली - कविता - कमला वेदी
प्रेम रंग में रंगी एक शहज़ादी, मुहब्बत के हंसी रंग बुनती है। पुष्प बिछाती राह में उसके, काँटे ख़ुद के लिए चुनती है। हाल बुरा उस शहजादी …
जले सदा जीवन दीवाली - मुक्तक - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
शुभकामनाएँ दे रहा है, हृदय तल से 'अंशुमाली'। मातु लक्ष्मी आगमन हो, जले सदा जीवन दीवाली। भूलना मत एक अकिचंन, की कुटी दीपक जलाना…
चलें जलाएँ दीप हम - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
दीपों की महफ़िल सजी, चहुँदिस विजयोल्लास। मुदित सुखी धन शान्ति जग, नवजीवन आभास।। कौशल लौटी जानकी, पटरानी रघुनाथ। दीपक जगमग चहुँ जले, कर…
दीपावली - मुक्तक - महेन्द्र सिंह राज
दीवाली हर साल मनाते, रावण हर साल जलाते हैं। होली पर होलिका जलाकर, ख़ुशियाँ हर वर्ष मनाते हैं। दानवता पर मानवता की, जीत नहीं होने पाती ह…
दीपावली - कविता - सीमा वर्णिका
जगमगा रही अमावस की रात, धरती पर आई तारों की बारात। दीपावली का पर्व सुहाना, मस्ती में झूमते गाते गाना। त्यौहार का मिला बहाना। बनती मिठा…
अयोध्या की दीवाली - कविता - आशीष कुमार
चौदह वर्षों बाद हो रहा आगमन, राम लक्ष्मण संग जानकी का होगा अभिनंदन। सज रही अनुपम अयोध्या नगरी, जैसे सजती कोई अप्सरा सुंदरी। भव्य साज-स…
आशादीप - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
आओ आशा दीप जलाएँ अंधकार का नाम मिटाएँ। 2 रूह जलाकर ज़िंदा रहना, जीवन की तो रीत नहीं। अंतिम हद तक आस न खोना, मानव मन की जीत यहीं। फूलों …
दीया और दीपावली - कविता - रतन कुमार अगरवाला
आओ मिलकर दिवाली मनाएँ, हर कोने में दिए जलाएँ, धरती का अंधकार मिटाएँ, दीया जलाएँ, क़ंदील जलाएँ। आशाओं के दीप जलाएँ, निराशा को दूर भगाएँ,…
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