दीया और दीपावली - कविता - रतन कुमार अगरवाला

आओ मिलकर दिवाली मनाएँ, हर कोने में दिए जलाएँ,
धरती का अंधकार मिटाएँ, दीया जलाएँ, क़ंदील जलाएँ।
आशाओं के दीप जलाएँ, निराशा को दूर भगाएँ,
आओ सभी मिलकर हम, हर घर में आज दीया जलाएँ।

अतीत से प्रेरणा लेकर, वर्त्तमान का अँधियारा भगाएँ,
वर्त्तमान की धुरी पर हम, भविष्य की परिकल्पना बनाएँ।
रास्ते का पत्थर देखकर, कहीं बीच में रुक न जाएँ,
पड़ाव को मंज़िल समझकर हम, मंज़िल को ही भूल न जाएँ।

आडम्बरों को दूर भगाएँ, नए विचारों का सम्मान करें,
युवापीढ़ी को मार्ग दिखाएँ, नव भारत का निर्माण करें।
संस्कारों की धारा बहाएँ, भारत को विश्वगुरु बनाएँ,
सत्य का मार्ग करें प्रशस्त, राष्ट्र का हम मान बढ़ाएँ।

हर गली में, हर चौबारे में, पवित्रता का दीया जलाएँ,
वैमनष्य को त्याग दे हम, समरसता का भाव जगाएँ।
कुंठित मन की गलियों में हम, नई ऊर्जा का संचार करें,
आओ मिलकर आज सभी, सदभावों का भंडार भरें।

पथ पर रुके रहें न हम, आगे की ओर बढ़ते जाएँ,
राष्ट्र पुनर्निर्माण की राह पर हम, चलते जाएँ बस चलते जाएँ।
दिलों के सूनेपन को हम, आओ आज हम दूर भगाएँ,
निराश मन में आओ हम, आज नया विश्वास जगाएँ।

विश्व के मानस पटल पर हम, भारत को सिरमौर बनाएँ,
हर भारतीय के हाथों में हम, नए विश्वास की डोर थमाएँ।
घी के दीये जलाकर हम, धरती पर प्रकाश फैलाएँ,
सारे बैर भुलाकर हम आज, प्रीत की पावन धारा बहाएँ।

विश्व को एक माला में पिरो कर, समरसता की पतवार चलाएँ,
सारे बुझे दीये जलाकर, मन में नई झंकार बजाएँ।
आतंकवाद का हनन करें, शांति का परचम फहराएँ,
माँ भारती को नमन करें हम, स्वतंत्रता का दीया जलाएँ।

रतन कुमार अगरवाला - गुवाहाटी (असम)

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