अयोध्या की दीवाली - कविता - आशीष कुमार

चौदह वर्षों बाद
हो रहा आगमन,
राम लक्ष्मण संग
जानकी का होगा अभिनंदन।

सज रही अनुपम
अयोध्या नगरी,
जैसे सजती कोई
अप्सरा सुंदरी।

भव्य साज-सज्जा
रंग रोगन से परिपूर्ण,
फीकी पड़ी इंद्रपुरी अमरावती
अयोध्या हुई अर्थ पूर्ण।

अंदर बाहर और
आंगन सहित द्वार पर
बना दी बालाओं ने
रंगोलियां शुभ अवसर पर।

कार्तिक मास है
रात्रि अमावस्या की,
घड़ी समाप्त हो रही
वर्षों की तपस्या की।

सुदूर आकाश मार्ग से
उतरा पुष्पक विमान,
धन्य धन्य हुई अयोध्या नगरी
पधारे हैं भगवान।

दर्शन की अभिलाषा में
बिछे हैं नयन,
हाथ में पुष्प थाल
मन में श्रद्धा सुमन।

घर-द्वार आँगन
कुटिया महल अट्टालिकाएँ,
झिलमिल झिलमिल जगमग जगमग
अयोध्यावासी घी के दीप जलाएँ।

दीप की लड़ियाँ चहुँओर
संदेश अंधकार से प्रकाश की ओर,
दीपावली पर्व मनाते तभी से
प्रतिवर्ष श्रद्धा भक्ति से हो भाव विभोर।

आशीष कुमार - रोहतास (बिहार)

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