दीपावली - मुक्तक - महेन्द्र सिंह राज

दीवाली हर साल मनाते,
रावण हर साल जलाते हैं।
होली पर होलिका जलाकर,
ख़ुशियाँ हर वर्ष मनाते हैं।
दानवता पर मानवता की,
जीत नहीं होने पाती है।
नहिं जाने रावण दूर्योधन
वापस कैसे फिर आते हैं।।

दीवाली को रावण वध कर,
राम लखन कोशल को आए। 
उनकी अगवानी में जन-जन,
हर घर-घर में दीप जलाए। 
गली-गली हर चौबारों पर,
ख़ुशियों का पारावार नहीं।
बूढे़ बच्चे जवाँ सभी मिल,
आपस में आनन्द मनाए।।

रावण वध यदि करना है तो,
अपने मन के रावण मारो।
काम क्रोध मद लोभ मोह को,
निस्नाबूत करो अरु जारो।
अर्थ धर्म अरु सत्य मोक्ष की,
राह गहो तुम सारे भाई।
साथ-साथ अपनी विपदा के,
सारे जग की विपदा टारो।।

महेन्द्र सिंह राज - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)

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