अरकान: मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
तकती: 1222 1222 1222 1222
ज़ख़्म इतने मिल चुके हैं तितलियों से,
डर नहीं लगता हमें अब आँधियों से।
शुक्रिया, जो आपने छीना सहारा,
बच गए हैं आज हम बैसाखियों से।
हम मुहब्बत की इबारत लिख रहे हैं,
तुम निकल भी आओ दिल की खाइयों से।
चार बर्तन इस क़दर बजने लगे हैं,
डर बहुत लगने लगा शहनाइयों से।
बोलते क्या बाप बनने की ख़ुशी में,
लुट गए हम डॉक्टर से-दाइयों से।
ज़िंदगी पर याद भारी पड़ रही है,
जान तो जाकर रहेगी हिचकियों से।
फिर ग़ज़ल में लुत्फ़ आकर ही रहेगा,
कुछ कहो तो फ़िक्र की गहराइयों से।
अरशद रसूल - बदायूं (उत्तर प्रदेश)