गुलमोहर - नवगीत - अविनाश ब्यौहार

गुलमोहर मानो
स्वर्ग का फूल!
 
लबालब भरा
है पराग!
खुले मधुमक्खी
के भाग!

मधुका का छत्ता
रहा है झूल!

धधके अंगार
सा रंग!
खिले हैं
मधुऋतु के अंग!

फूलों की नदी
गंधों के कूल!

लाल हैं
और हैं पीले!
गाँव में
इनके क़बीले!

वैशाख जेठ
नहीं जाते भूल!

अविनाश ब्यौहार - जबलपुर (मध्य प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos