समरस जीवन सहज हो - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'

अरुणिम आभा भोर की, खिले प्रगति नवयान।
पौरुष परहित जन वतन,सुरभित यश मुस्कान।।

नवयौवन नव चिन्तना, नूतन नवल विहान।
नव उमंग सत्पथ रथी, बढ़े राष्ट्र सम्मान।।

राष्ट्र धर्म कर्त्तव्य मन, मर्यादा रख ध्यान।
बढ़ें शान्ति सद्भावना, लोकतंत्र सम्मान।।

सबके प्रति सम्मान हो, सबमें हो सहयोग।
खिले प्रकृति सुरभित प्रगति, बने स्वच्छ नीरोग।।

बिना प्रदूषित देश हो, सहनशील जनतंत्र।
परहित हो संवेदना, शिक्षा जीवन मंत्र।।

समरस जीवन सहज हो, संयम मनुज स्वभाव।
धीर वीर साहस प्रखर, हो सहिष्णु हर घाव।।

शिक्षित नर नारी सभी, प्रगतिशील हो सोच।
मानवता सद्नीति रथ, हों विचार मन लोच।।

सर्वधर्म सम्मान हो, अपनापन हिय भाव।
संविधान ही मंत्र हो, क्षमादान हो छाव।।

मातु-पिता गुरु श्रीचरण, श्रद्धा सेवा मान।
ईश्वर परायण बनें, तजें मिथक अभिमान।।

अरुणोदय आशा प्रगति, सदाचार अभिराम।
भक्ति प्रीति मन मीत बन, तभी राष्ट्र् सुखधाम।।

डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' - नई दिल्ली

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