उसे नहीं पसंद लकीरों पर चलना - कविता - अबरार अहमद

उसे नहीं पसंद...
किसी भी लकीर के पीछे चलना,
समझ और नासमझी 
की परिभाषा में उलझना,
सही और ग़लत के गुणा भाग 
में जीवन का रस छोड़ देना।

उसे नहीं पसंद...
अपनी इच्छाओं का दमन करना,
ख़ुद को रोकना अपनी ख़ुशियों के लिए।

उसे नहीं पसंद...
बेवजह मुस्कुराना।

उसे पसंद है...
बेझिझक उड़ना
किसी भी ऊँचाई से ऊपर
अपने परवाज़ से भी ऊपर
छोटी-छोटी ख़ुशियों को
बड़े-बड़े मर्तबान में भरकर
कोलाज बनाना।

उसे पसंद है...
अपनी आज़ादी
किसी भी क़ीमत पर,
अपनी ख़ुशी
हर हाल में
जो उसका पहला प्यार है।

उसे पसंद है...
गुड्डे गुड़िया का खेल
जो ज़िंदगी की धूप में
खो गया है
मगर उसे बेहद पसंद है
अपनी गुड़िया का गुड्डे के साथ
ब्याह कराना।

उसे पसंद है...
अपनी पसंद
किसी का थोपा हुआ 
तो बिल्कुल नहीं
और वाकई
उसकी पसंद का 
कोई जवाब नहीं
क्योंकि वो सरहदों के पार है,

और सरहदों से उसे है
सख़्त नफ़रत।

अबरार अहमद - देवरिया (उत्तर प्रदेश)

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