कार्तिक मास की शुक्ल षष्ठी को,
मनाते छठ का व्रत महान।
सुख समृद्धि का दाता है और,
दे निःसंतानों को संतान।
प्रियवंद राजा बड़ा था व्याकुल,
कौन बढ़ाएगा उसका कुल,
हर क्षण दुखी वह रहता था।
महर्षि के कहने पर गंगा तट,
रानी संग किया कठिन व्रत उपवास।
उसी व्रत के फलस्वरूप पाया पुत्र,
हुआ चहुँ तरफ़ हर्ष उल्लास।
त्रेता में श्रीराम, द्वापर में द्रोपदी,
ने किया था सूर्यदेव का यह,
तप-व्रत महान।
हुआ संहार रावण का त्रेता में,
द्वापर में मिला द्रोपदी को,
कष्टों से समाधान।
उगते रवि को सब है पूजते,
ढलते को न कोई पूजे।
पर इस महान छठ व्रत में,
श्रद्धा से सब डूबतें दिनकर
को अर्घ्य देते।
संताओ की दीर्घ आयु की कामना से,
माताएँ करती, चार दिवस सूर्यपूजा और उपवास।
सुखसमृद्धि रहती सदा घर, ख़ुशहाली का रहता वास।
नंदिनी लहेजा - रायपुर (छत्तीसगढ़)