जो मन कहता - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'

अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
तक़ती : 22  22  22  22

बंदिश में जीना, मरना है,
फिर क्यों बंदिश से डरना है।

सोच लिया है इसीलिए अब,
जो मन कहता वह करना है।

दुख की गहरी झील हुआ दिल,
अधिक न अब इसको भरना है।

अश्क बनो हर दुख से कह दें,
आँखों से जी भर झरना है।

अपना-अपना हित है सबका,
दोष किसी पर क्यों धरना है।

दुनिया से उम्मीद न कीजे,
अपना संकट ख़ुद हरना है

मोह न पाल किसी से 'अंचल',
इक दिन इस भव से तरना है।

ममता शर्मा 'अंचल' - अलवर (राजस्थान)

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