मैं बोझ नहीं हूँ भाग्य लेकर आई हूँ,
ममता की मूर्त मैं कुदरत की जाई हूँ।
मेरे आने से आँगन तेरा महकेगा,
मन उपवन का हर एक कोना चहकेगा।
काली, दुर्गा, लक्ष्मी मैं ही आद भवानी,
बेटी, बहना, माता मैं ही तेरी नानी।
रूप अनेकों मेरे कुछ तो पहचान सही,
बनकर विजय श्री मैं ही तेरी शान रही।
मैं मनु, आज़ादी का बिगुल बजाने वाली,
मैं इंदिरा, दिल्ली का शासन चलाने वाली।
मैं मैरी कॉम, पदक ओलम्पिक लाने वाली,
मैं गीता भारत का मान बढ़ाने वाली।
बोझ नहीं हूँ पर फिर भी रोका जाता है,
चेतन बुद्धि वाला क्यों जड़ होता जाता है?
बेटा वह फूल है जो घर को महकाता है,
बेटी से जग का उपवन महका जाता है।
मैं हर एक उपवन को महकाती चलती हूँ,
फिर भी न जाने क्यों माली को खलती हूँ?
पक्षपात न जाने कितने ही मैं सहती हूँ,
इतने पर भी उफ़ तक न मुँह से कहती हूँ।
बिन मेरे इस जीवन का आधार नहीं है,
क्या तेरी सुधबुध में तनिक विचार नहीं है?
मैं बुनती हूँ सपने पर साकार नहीं हैं,
क्योंकि तुझे मेरे सपनों से प्यार नहीं है।
गणेश भारद्वाज - कठुआ (जम्मू व कश्मीर)