प्रदूषण - कविता - डॉ॰ उदय शंकर अवस्थी

जिधर देखिए प्रदूषण प्रदूषण,
धरती वहीं आसमाँ भी वही,
चाँद तारे सूरज भी वही,
हवा वो मगर कहाँ खो गई?
भूल हमसे कहाँ हो गई?
नदियाँ वही आज नाला हुईं,
निर्मल जल था विष का प्याला हुईं।
धरती ज़ुल्म सब चुप सहती रही,
प्रकृति ख़ामोश रह सब कहती रही,
समझे नहीं ख़ता हमसे हुई।
चलो संकल्प लें मिल हम सब यही
प्रदूषण नहीं अब प्रदूषण नहीं,
धरा पर होगा कहीं अब प्रदूषण नहीं।

डॉ॰ उदय शंकर अवस्थी - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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