राम : हमारी आत्मा - कविता - डॉ॰ गीता नारायण

राम... राम... और राम!
सब वहीं पर विराम।
जहाँ राम नही
वहाँ कैसा विश्राम! 

चाहे जितना आगे जाऐं
लौटकर आना होगा,
हर इंसान को अंत में
राम में समाना होगा। 

चक्र वहीं पर पूर्ण होता
जहाँ से आरंभ है,
राम हमारा धर्म, दर्शन
राम हमारा अध्यात्म है। 

राम हमारी आँखों का
जागता हुआ ख़्वाब है;
राम हमारी जिह्वा पर 
रखा अमृत राग है;
राम हमारे कानों में 
झंकृत सितार है,
राम हमारे मन-मंदिर में
सगुण और साकार है। 

राम हमारी आत्मा का
अनंत विस्तार है;
राम हमारे रक्त-प्रवाह में बहता
जीवन राग है।
जिस दिन भारत के रक्त-प्रवाह से
राम नाम मिट जाएगा,
उस दिन भारत 
क्या सच में भारत रह जाएगा?

डॉ॰ गीता नारायण - गुरुग्राम (हरियाणा)

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