सूर्य की धरती - कविता - मनस्वी श्रीवास्तव

मैं धरती तू सूर्य मेरा...
तेरे "प्रकाश" से चमक रही,
नित हरित दूब सी महक रही,
विघ्नों के विराम अवसर पर,
शरद सा शीतल हुआ सवेरा।
मैं धरती तू सूर्य मेरा...
कभी व्यथित हुई कभी द्रवित हुई,
तेरे ही संग अब मुदित हुई,
प्रकृति के सुंदर सुंदरवन में,
शुरू है अपना नया बसेरा।
मैं धरती तू सूर्य मेरा...
प्रेम के पावन व्योम के भीतर,
यूँ ही करती रहूँ तेरी परिक्रमा,
आनंदित अंतर्मन हो तेरा और,
सहज सफल जीवन हो मेरा।
मैं धरती तू सूर्य मेरा...

मनस्वी श्रीवास्तव - प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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