दीपावली - कविता - सीमा वर्णिका

जगमगा रही अमावस की रात,
धरती पर आई तारों की बारात।

दीपावली का पर्व सुहाना,
मस्ती में झूमते गाते गाना।
त्यौहार का मिला बहाना।

बनती मिठाईयाँ भर-भर परात,
धरती पर आई तारों की बारात,
जगमगा रही अमावस की रात।

पूजें जाते लक्ष्मी व गणेश,
नर-नारी धर कर सुंदर वेश,
ख़ुशियों से निखरे परिवेश।

माटी का दिया जलाए हर जात,
धरती पर आई तारों की बारात,
जगमगा रही अमावस की रात।

बहन बेटी आती हैं मायके,
पकवानों से बढ़े हैं जायके, 
देती दुआ उपहार पाए के।

दुआएँ मुश्किलों को देती मात,
धरती पर आई तारों की बारात,
जगमगा रही अमावस की रात।

चिड़िया गौर पूजन व गोवर्धन,
भाई द्वौज बढ़ाता अपनापन,
भाएँ साफ़ सुथरे घर आँगन।

लोग बाँट रहे ग़रीबों में ख़ैरात,
धरती पर आई तारों की बारात,
जगमगा रही अमावस की रात।

सीमा वर्णिका - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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