संदेश
सोच सदा जग स्वस्ति की - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
जय सुधीर गंभीर नर, उद्यमशील विनीत। सफल कीर्ति अनमोल धन, निशिचन्द्र मधुप्रीत।।१।। अर्थ बने सम्बन्ध के, अपनापन विश्वास। साथ खड़े सुख त्र…
माँ मुझको जन्म लेने दो - कविता - अंकुर सिंह
माँ मुझको आज जन्म लेने दो, खुली हवा में खुलकर जीने दो। आज भ्रूण हत्या से बचा मुझे, गर्भ के बाहर मुझको आने दो।। मैं कल्पना बन अंतरिक्ष …
लोग - कविता - कुन्दन पाटिल
आपकी-मेरी, इधर-उधर की। न जाने क्या क्या बातें करते लोग।। सुख अपनो का पचा नहीं पाते। दूख में कभी काम न आते लोग।। अपने हाथों अपना सुख-चै…
प्रकृति दृश्यमय है - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
प्रकृति का वह दृश्य नवेला युगो युगो के जैसा था वह जैसा कल देखा था मैंने उदयाचल में लाल था गोला पल-पल बढता देखा मैंने। आसमान के मेघा…
अध्यक्षीय भाषण - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
हिन्दी दिवस आयोजन के अध्यक्ष महोदय ने अपने भाषण में कुछ यूं कहा संजीदगी से कि मैनें अपने बाल नोच लिए बेचारगी से मैं आपका हिन्दी डे क…
हकीकत ए ज़िन्दगी - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
हसरतें बढती गई हौसला बढता गया शर्तों की ए जिन्दगी बस हाशिया बढता गया।। कुछ कर गुजरने की राह पर यू ही हरकते बढती गयीं हासिल से हकीकत का…
अकेले में - कविता - प्रवीन "पथिक"
अकेलेपन की गहन निशा में, अनिमेष देखता हूँ एक सपना कि, डूब रहा हूँ गहरी खोह में; पाताल की गहराइयों में, धँसता, निष्प्राण काया लिए, बढ़त…
अरुणाभ बना मैं शिक्षक हूँ - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
उत्थान सतत विज्ञान जगत अरुणाभ बना शिक्षक मैं हूँ। हर तमोगुणी आलोक विरत, निशिचन्द्रप्रभा सोमाकर हूँ। …
बेरोज़गारी - कविता - डॉ. राजकुमारी
पीठ पर बेरोज़गारी का फोड़ा निकला धेर जगह मवाद लिए दिनो दिन बढ़ रहा है ये आहिस्ता-आहिस्ता कुलमुलाने लगेगी, देखना, पीड़ा फिर अत्यधिक विस…
बेचारे बेरोजगार - कविता - प्रशान्त "अरहत"
बहुत भोले होते हैं बेचारे बेरोज़गार! वे नहीं जानते लड़ना; अपने रोज़गार। शिक्षा, स्वास्थ्य और अपने हक़ के लिए। तभी वंचित रहते हैं। तमाम सर…
सब सुलझा लगता हैं - कविता - कर्मवीर सिरोवा
मसअला कई हैं मेरे ज़ेहन-ओ-दिल में, तू पास आ जाये तो सब सुलझा लगता हैं। हक़ीक़त की जमीं ख़्वाबों को देनी ही नहीं, इस बाहर की दुनिया से ब…
प्यार वो फूल है - कविता - चीनू गिरि
प्यार वो फूल हैं ... जो एक बार खिल जाए तो, उम्र भर महकता रहता हैं !! ये कभी मुरझाता नही, सदाबहार हैं, हर मौसम मे खिला रहता हैं !! मन क…
वो नींद - नज़्म - हरि ओम राजपूत
वो नींद मुझे जब आती थी, सोने से पहले सोने तक ! वो कई गुजारी रातें थी, वो भोर सुनहरी किरणों तक !! वो ख्वाब तुम्हारे आते थे, आकर फिर कतर…
काश मुझे समझ पाते - कविता - शेखर कुमार रंजन
मैंने दिल में आपको रहने की इजाजत दी है बस इसलिए हर रोज हम बेवजह मर रहे है आप पर आँखें बंद करके की हैं भरोसा मैंने शायद इसलिए दिन रात ह…
तुम्हे याद है न! - कविता - वरुण "विमला"
तुम्हें याद है वो सुबह! जब तुम मेरी साइकिल पर, बैठ गई थी ज़बरदस्ती। मैं तो बिलकुल डर गया था, जैसे किसी चूहे की नज़रे, बिल्ली से मिलने प…
जीवन में परिवर्तन ही स्थिर है - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
परिवर्तन के सिवा इस सृष्टि में स्थिर कुछ भी नहीं है। परिवर्तन एवं गति संसार का अनिवार्य नियम है। इस सृष्टि का यही शाश्वत नियम भी है। इ…
घर ! मुझे पहचानते हो - कविता - डॉ. कुमार विनोद
जीवन के आपाधापी में शान्ति की तलाश में इक्कीस दिनी शाश्वत् सत्य की खोज में बाहर के अहर्निश शोर से अलग- थलग एकान्त में रहने को मन आतुर…
गजानन महाराज - कविता - अंकुर सिंह
भाद्र शुक्ल की चतुर्दशी, मनत है गणपति त्योहार। सवारी जिनका मूषक डिंक मोदक है उनका प्रिय आहार।। उमा सुत है प्रथम पूज्य, कहलाते गजानन मह…
सोशल मीडिया विरोधी पोस्ट - लेख - चन्द्र प्रकाश गौतम
आज हम लोग जिस युग में हम श्वास ले रहें हैं। यह युग डिजिटल का युग है। और डिजिटल युग में लोग अपने जीवन के पल पल की क्रिया विधि को सोशल म…
आलिंगन - कविता - आलोक कौशिक
पृथक् थी प्रकृति हमारी भिन्न था एक-दूसरे से श्रम ईंट के जैसी सख़्त थी वो और मैं था सीमेंट-सा नरम भूख थी उसको केवल भावों की मैं था …
चुनौती - लघुकथा - सुधीर श्रीवास्तव
राम की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, फिर भी वो अपनी बेटी की अच्छी शिक्षा के लिए हर संभव प्रयास करता रहता रहता। बेटियाँ भी इस बात को बखू…
कोरोना भाग भी जाओ - गीत - महेश "अनजाना"
ऐ कोरोना! भाग भी जाओ क्यों भारत में तू आया है। माना कि छुपा रुस्तम है तू किसी को नज़र ना आया है। यहां ऐसी जवानी है जिसमें नूर झलकती है…
कौन रहता हैं दूसरा मुझमें - ग़ज़ल - अंकित राज
मेरे होने का दे पता मुझमें। कौन रहता है दूसरा मुझमें। सोचता हूँ कहां से निकलेगा, तुझको पाने का रास्ता मुझमें। नींद मुझको तो आ गई लेकिन…
प्रिय राग तजो कर मधुर मिलन - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
जीवन की सारी खुशियाँ ले, पुष्पित प्रसून मुस्कान बनो। नयी प्रगति नित कीर्ति लता में, गन्धमाद सजन मन रंग भरो। सरस मध…
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