लोग - कविता - कुन्दन पाटिल

आपकी-मेरी, इधर-उधर की।
न जाने क्या क्या बातें करते लोग।।
सुख अपनो का पचा नहीं पाते।
दूख में कभी काम न आते लोग।।
अपने हाथों अपना सुख-चैन।
अक्सर यहाँ खोते रहते लोग।।
अपने सुख को खोजते रहते।
अपनो के सुख से दूखी लोग।।
अहंकार, नफरत, शक को पाले।
मान सम्मान अपना खोते लोग।।
सत्य-निष्ठा, सेवा से दूर जाते।
जीवन मरूस्थल बनाते लोग।।
सच्चे सुख की चाह मन में लिये।
जीवन भर दूख भोगते लोग।।
अपने अनमोल जीवन को भी।
व्यर्थ अडम्बर में बिताते लोग।।

कुन्दन पाटिल - देवास (मध्यप्रदेश)

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