जीवन में परिवर्तन ही स्थिर है - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला

परिवर्तन के सिवा इस सृष्टि में स्थिर कुछ भी नहीं है।
परिवर्तन एवं गति संसार का अनिवार्य नियम है। इस सृष्टि का यही शाश्वत नियम भी है। इसी में गति और जीवन है। मनुष्य का परिवर्तन शीलता धारण किए रहने में कल्याण है।

जो स्थिर जैसे दिखाई पड़ते हैं उन में स्थिरता नहीं है। यह सब कुछ गतिशील है।
जड़ पदार्थ के अणु परमाणु के भीतर के कण सदा बन्द वृत्तों मे गतिमान रहते हैं।
शरीर के भीतर भी स्थिरता नही है।
यहाँ तक चंद्रमा, सूर्य, पृथ्वी भी गतिमान रहते हैं।
शरीर के भीतर भी स्थिरता नहीं है शरीर के भीतर संपूर्ण अवयव स्वसंचालित प्रक्रिया द्वारा अपने अपने कार्यों में निष्ठा पूर्वक जुटे रहते हैं।
गति ही जीवन है और विराम मृत्यु।

निश्चलता तो जड़ जैसे दिखने वाले पहाड़ और चट्टानों में भी नहीं होती। उनके भीतर भी परमाणु की हलचल जारी रहती है। यहाँ तक ग्रह, नक्षत्र, वृक्ष वनस्पति, नदी, नाले सब में गति समान रूप से गति विद्यमान है। 
जीवन में परिवर्तन होते रहते हैं, कहते हैं यही प्राकृतिक नियम है।
यही परिवर्तन जीवन को नई दिशा देते हैं। जो स्थिर होते हैं अर्थात परिवर्तन का चरित्र स्थिर होता है, कभी परिवर्तित नहीं होता।

प्रकृति में पल-पल परिवर्तन होते हैं। इंसान का जीवन और  प्रकृति निरंतर परिवर्तित होती रहती हैं। जमाने में भी परिवर्तन होते रहते हैं, परंतु परिवर्तन क्रिया स्थिर रहती है।
जब संसार शुरू हुआ तभी से परिवर्तन होता रहा है।परिवर्तन के नियम को जब हम स्वीकार करने से इनकार करने लगते हैं तब हम दुखी होते हैं।

हमें समझना होगा कि जब अच्छे दिन स्थाई नहीं रहते तो बुरे दिन भी स्थाई नहीं रहेंगे ।
जीवन के परिवर्तन मनुष्य के धैर्य व स्थिरता की परख करते हैं।
कभी कभी जीवन में परिवर्तन लाना भी आवश्यक हो जाता है। क्योंकि मनुष्य का जीवन एक जैसा रहेगा तो जीवन में नीरसता हो जाएगी, इसलिए मनुष्य को परिवर्तन को सकारात्मक भाव से ग्रहण करना चाहिए।
कुछ परिवर्तन जिन्हें हम बदल नहीं सकते, जैसे जन्म के बाद हमारे विभिन्न अवस्थाओं का परिवर्तन, प्रकृति के नियमों का परिवर्तन।

मनुष्य अपनी जरूरत के अनुसार परिवर्तन से अपनी जीवनशैली में परिवर्तन लाता है, लाना भी चाहिए।
परिवर्तन ही जीवन को गतिशीलता देता है, जीवन को नयापन देता है।
आदि काल से आज तक मानव का वातावरण रहन-सहन, सोच मे, उसकी सारी गतिविधियों में जो परिवर्तन आया है यही विकास की परिभाषा भी है।
 जब हम जीवन शुरू करते हैं तब अनेकों ऊबड़ खाबड़ रास्तों से गुजरते हुए आगे बढ़ता है हमारा जीवन। यह भी एक यात्रा है।

जब हम यात्रा शुरू करते हैं तो मंजिल तक पहुंचना तय होता है।
जन्म एवं मृत्यु  स्थिर है। यात्रा की स्थिति परिवर्तनशील है, उसे स्वीकारना होगा, यही हितकर है एवं जरूरी भी।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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