काश मुझे समझ पाते - कविता - शेखर कुमार रंजन

मैंने दिल में आपको रहने की इजाजत दी है
बस इसलिए हर रोज हम बेवजह मर रहे है
आप पर आँखें बंद करके की हैं भरोसा मैंने
शायद इसलिए दिन रात हम आहें भर रहें है।

आपने बस मेरे होंठो पर मुस्कान देखें
काश मेरे आँखों की नमी भी देख पाते
आपने तो गुरूर में सिर्फ आसमान देखें
जिस पर खड़े थे काश वो जमी देख पाते।

आपने सिर्फ अंत का मेरी थकान देखें
काश मेरी ऊँची उड़ान भी देख पाते
मेरी चुप्पी देख कर मुझे पराया कह दिया
काश वो मेरी कटे हुए जुबान भी देख पातें।

दोषी समझकर वो सीधे चल दिये आगे
काश वो पीछे मेरे जनाजे को भी देख पाते।

शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos