सोशल मीडिया विरोधी पोस्ट - लेख - चन्द्र प्रकाश गौतम

आज हम लोग जिस युग में हम श्वास ले रहें हैं।
यह युग डिजिटल का युग है। और डिजिटल युग में लोग अपने जीवन के पल पल की क्रिया विधि को सोशल मीडिया पर अपडेट करते रहते हैं। इसी के साथ लोग अपने आस्था से जुड़ी तस्वीरें या विचार भी व्यक्त करते हैं। किन्तु सोशल मीडिया एक बहुत बड़ा अन्तर्जाल है जिसमें लोग एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।

यदि किसी के धार्मिक विचार या तस्वीर पर कोई व्यक्ति अपना व्यक्तिगत विचार व्यक्त करता है तो वह विचार किसी को अच्छा तो किसी को बुरा भी लगता है।
इस संदर्भ को लेकर सोशल मीडिया पर धार्मिक कट्टरवाद का विवाद प्रारम्भ हो जाता है। जो किसी न किसी रूप में समाज पर बुरा प्रभाव डालता है। और लोगों के बीच आपसी दूरियाँ बढ़ जाती हैं। साथ ही लोग अपने धर्म को अच्छा तो तो दूसरे धर्म को बुरा मानने लगते हैं। 
जबकी देखा जाय तो कोई भी धर्म बुराइयों के मार्ग पर चलने या धार्मिक कट्टरता का उपदेश नहीं देता।

सोशल मीडिया पर लोग जाति सूचक शब्दों का भी प्रयोग करते हैं। यहीं कारण है कि लोगों के बीच साम्प्रदायिकता, जातिवाद बढ़ने लगता है। और समाज विकास पथ को छोड़ कर अधोगति की ओर बढ़ने लगता है। साथ ही आपस में भाईचारे का भाव भी निष्क्रिय होने लगता है।
सोशल मीडिया में जातिवाद का प्रभाव इस तरह  प्रभावकारी साबित होता है कि लोग सोशल मीडिया से निकलकर निजी जीवन में जातिवाद को एक कट्टरता के रूप में अपनाते हैं। साथ ही लोग अलग-अलग सम्प्रदायों में बट जाते हैं जिससे समाज की एकता, राष्ट्र की एकता खण्डित होती है। 

जब समाज धर्म जाति सम्प्रदाय में बट जाता है तो ऐसे समाज के बीच से राष्ट्र विरोधी नारे भी लगने लगते हैं।
सोशल मीडिया पर ही लोग त्रितीय विश्व युद्ध छेड़ देते हैं।  जिससे राष्ट्र की एकता-अखंडता पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है। 

सोशल मीडिया पर लोग जिस तरह से अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं चाहे वह धार्मिक कट्टरवाद का हो या संप्रदायिक हो या जातिवाद या राष्ट्र विरोधी इन सबका प्रभाव राष्ट्र के हित में या समाज के हित में कुछ भी योगदान नहीं करता सिर्फ लोगों के बीच आपसी मतभेद उत्पन्न करता है। 
इस तरह देखा जाय तो सोशल मीडिया पर धार्मिक कट्टरवाद, साम्प्रदायिकता, जातिवाद, राष्ट्र विरोधी  पोस्टों पर प्रतिबंध लगाना अति आवश्यक है।

चन्द्र प्रकाश गौतम - मीरजापुर (उत्तर प्रदेश)

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