मेरे होने का दे पता मुझमें।
कौन रहता है दूसरा मुझमें।
सोचता हूँ कहां से निकलेगा,
तुझको पाने का रास्ता मुझमें।
नींद मुझको तो आ गई लेकिन,
रह गया कौन जागता मुझमें।
उसने झांका तो यूं लगा मुझको,
जैसे उसका है आईंना मुझमें।
खुद से मिलना मुहाल है मेरा,
खुद से कैसा है फासला मुझमें।
अंकित राज - मुजफ्फरपुर (बिहार)