कौन रहता हैं दूसरा मुझमें - ग़ज़ल - अंकित राज

मेरे होने का दे पता मुझमें।
कौन रहता है दूसरा मुझमें।

सोचता हूँ कहां से निकलेगा,
तुझको पाने का रास्ता मुझमें।

नींद मुझको तो आ गई लेकिन,
रह गया कौन जागता मुझमें।

उसने झांका तो यूं लगा मुझको,
जैसे उसका है आईंना मुझमें।

खुद से मिलना मुहाल है मेरा,
खुद से कैसा है फासला मुझमें।

अंकित राज - मुजफ्फरपुर (बिहार)

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