अरुणाभ बना मैं शिक्षक हूँ - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

उत्थान    सतत     विज्ञान  जगत
अरुणाभ   बना    शिक्षक   मैं  हूँ।
हर     तमोगुणी  आलोक    विरत,
निशिचन्द्रप्रभा      सोमाकर     हूँ। 

मृण्मय    काया    मानव   जीवन,
बन     कुंभकार    निर्माणक   हूँ।
विविध     ज्ञानरंग    चारु    सुघर,
शुभ   पात्र   मनुज  मैं  सर्जक हू्ँ।

सम शान्त चित्त निश्छल कोमल,
महादान    ज्ञान   सम्मानक    हूँ।
सत्कर्म   निरत  गुण शील विनत,
सौरभ    सरोज  रस   गुरुतर  हूँ। 

घनघोर  घटा  तम  छा   मन  में ,
आलोक    नया    दे   पाता   हूँ।
परमार्थ निरत नित स्वार्थ विरत,
सम्वाहक  बस    बन  जाता ह़ूँ।

सोपान नया   निर्माण   पथिक,
वरदान     ज्ञान   उद्गाता      हूँ।
मानक सह   निष्ठा  प्रतिमानक,
नवयुग   साधक   संधानक  हूँ।

अखण्ड मण्डलाकार  गुरुवर,
माना  त्रिदेव  से  गुरुतर     हूँ।
गोविन्द  श्रेष्ठ  शास्त्रज्ञ   प्रवर,
परमार्थ  जगत   श्रेयस्कर  हूँ। 

कर्तव्य बोध  हो उज्ज्वल जग,
नित छात्र  सहज गुण गाता हूँ।
उद्रेक   ज्ञान  जन  कल्याणक,
नैतिक  मानव  पथ  चलता हूँ। 

अन्तर्मन  शीतल  मृदु   पावन,
निर्माण कार्य जग शुभफल हूँ।
पतवार  बना  मँझधार  सरित,
बन नाविक  मनुज  खवैया हूँ।

नीर  क्षीर   सरोवर   गुरु   मानक,
गुरु   मति   विवेक   हंसासन   हूँ।
अभिलाष मनुज नवकीर्ति फलक
नव ज्योति  किरण  नव जीवन हूँ।

बहुरूप   जगत   गुरुदेव   चरित,
बन मातु     पिता  आराधक   हूँ।
नित  आलोक   बने  शिक्षायतन,
जीवन  अनेक    गुरुनानक    हूँ।

आधान  जगत  सम्मान  मनुज,
शंंकर  विधि हरि सम सर्जक हूँ।
अगस्त्य वशिष्ठ   नर   नारायण,
बुद्ध   महावीर  शंकर  सम   हूँ।

अत्रि कौत्स नित धौम्य  समझ,
याज्ञवल्क्य व्यास गुरु गौतम हूँ।
बन वाल्मीकि विश्वामित्र जगत,
बृहस्पति शुक्र  करुणाकर   हूँ।

सदाचार युक्त पथ त्याग निरत,
चाणक्य   नीति   रत्नाकर   हूँ।
हूँ भृगु   समान भृगुनन्दन जग,
गार्ग्य   पाणिनि कात्यायन  हूँ।

दुर्वास कुप्त  मन  करुणाकर,
शुकदेव कपिल वात्स्यायन हूँ।
हूँ चरक जीवक संदीपन गुरु ,
पतंजलि   स्वयं   योगेश्वर  हूँ।

त्याग  शील   गुण  कर्म  पथिक,
मद   मोह  विरत जग  तारक हूँ।
तिमिर घोर  विपद  अज्ञान परत,
शशि भानु किरण निशिवासर हूँ। 

हूँ     उमारमण   ऋषितुल्य   प्रवर,
परशुराम      गुरु    मंजू    श्री   हूँ।
हूँ अखिल विलास ललिता  ममता,
आचार्य    श्रेष्ठ     शिवशंकर     हूँ।  

बिन गुरु  होत न ज्ञान मनुज जग,
पथप्रदर्शक  जीवनधर  गुरु    हूँ।
श्रद्धा विनत रख चिर साधक बन,
पात्र   शिष्य   परिचारक  गुरु  हूँ।

शत् शत्  प्रणाम    गुरुश्रेष्ठ  चरण,
उऋण   समर्पित   शिष्य विनत हूँ।
निशिचन्द्र अरुण जीवन  तम  बन,
अनमोल  कीर्ति  गुरु  पदतल   हूँ। 

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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