हकीकत ए ज़िन्दगी - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"

हसरतें बढती गई
हौसला बढता गया
शर्तों की ए जिन्दगी
बस हाशिया बढता गया।।

कुछ कर गुजरने की राह पर
यू ही हरकते बढती गयीं
हासिल से हकीकत का सफर
आखिरी साँस तक चलता रहा।।

बंद मुट्ठी आया राही
हाथ खोले चल दिया
फिर भागा क्यों तू दर बदर
क्यों तिजोरियाँ भरता रहा।

हकीकत रही इंसानियत 
तेरे साथ जायेगी मगर
भर पेट सो गया है तू
कोई भूखा ही मरता रहा।

जमीं पर दीवारें घेर कर
इंसान ने कब्जा किया
ये तन भी मौत के कब्जे में
उस दिन तलक लडता रहा।

हकीकत यही तेरी जिंदगी
जिंदगी सुलगती जलती   रही
खत्म होती वक्त दर वक्त
ख्वाहिशों का सिलसिला बढ़ता रहा।।

सूर्य मणि दूबे "सूर्य" - गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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