संदेश
विकृत मानसिकता - कविता - अरुण ठाकर "ज़िन्दगी"
तमाशा बना रखा कुछ सिरफ़िरे ना फ़रमान लोकतंत्र के हत्यारों ने। अपनी मन मर्ज़ी, थोपना, मनवाना, अपने किरदार में, इस कदर शामिल कर रखा है…
हिन्दी का आस्तित्व - आलेख - अतुल पाठक "धैर्य"
आज की पीढ़ी हिन्दी का अस्तित्व खो रही है। जगह-जगह अंग्रेजी मीडियम विद्यालय खुल रहे हैं। हिन्दी मीडियम को आज बच्चे और अभिभावक दोनों ही क…
मानव स्वभाव - कविता - कुन्दन पाटिल
सोचता हूँ, खयालों मे डुब जाता हूँ। खयाली पुलाव मन हि मन पकाता हूँ।। अच्छे विचारों से मन प्रफुल्लित हो जाता हैं। खुशियाँ और आनंद कि बहा…
तेरे शहर में - ग़ज़ल - प्रदीप श्रीवास्तव
तेरे शहर में टूटे सपने नींद अधूरी है। सब बेदिल हैं दिल से दिल की लंबी दूरी है।। सारा दिन मारा फिरता हूँ तेरी गलियों में , मिलती नहीं द…
इतिहास - कविता - दीपक राही
इतिहास बनते नहीं, बनाए जाते हैं, कुछ लोग तो समय से लड़कर इतिहास होते हैं। तो कुछ लहरों से भिड़कर इतिहास हो जाते हैं। इतिहास ही अतीत क…
बस फ़ैशन में फँसा जमाना - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
फ़ैशन का भूत नशा बन छाया, गज़ब इक्कीसवीं युवजन माया। कोमल किसलय सज्जित ले काया, मधुशाल नग्न जग रूप दिखाया। फ़ँस चकाचौंध …
हिंदी और शिक्षा - कविता - सुनीता रानी राठौर
शिक्षा का सर्वदा सूत्रधार बना हिन्दी, शिक्षा का सशक्त आधार बना हिन्दी। हिन्दी जन-जन को एकसूत्र में बांधती, शिक्षा का सार्थक मिसाल बन…
इंसान का सौदा - ग़ज़ल - मोहम्मद मुमताज़ हसन
हो रहा है आजकल इंसान का सौदा हक - हक़ूक़ और ईमान का सौदा जंग इंसाफ़ की हम रह गए लड़ते कर लिया उसने हुक्मरान का सौदा खूब सियासत चमका रहा था…
बिटिया करे सवाल - खोरठा कविता - रवि शंकर साह
बेटा होले कुल के दीपक । हम होलिये ज्योति गे माय। बेटा तो बदमाशों हो झे बेटी तो होवे झे एक गाय। दुनिया के ई केसन रीति रिवाज केसन झे इ स…
सोच पलट जाएगी - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"
कम को बहुत मान लेंगे तो उम्र मज़े से कट जायेगी चैन मिलेगा मन को, ग़म की गहरी बदली छट जायेगी भूख-प्यास चाहे जितनी हो रोना-धोना तो कम होगा…
कृषक व्यथा - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
धरती सेवक, अन्न प्रदाता भूखो के तू कष्ट मिटाता, बारिश, गर्मी, शीतलहर में तू अपना कर्तव्य निभाता।। सूखे में खुद भूखा मरता बाढ़ में तू …
विवेकानन्द का सपना - कविता - प्रशान्त "अरहत"
नज़र मंजिल पे है जिनकी, वो कदम खुद ही बढ़ाते हैं। फिर चढ़कर आसमानों पर, सितारे गढ़ के आते हैं। चाहे दीवार बनकर मुश्किलें, लाख फिर रास्ते म…
बीता सावन - त्रिभंगी छंद - संजय राजभर "समित"
करके हरियाली, छटा निराली, बीता सावन पावन था। नदियाँ मतवाली, घटा कराली, झिलमिल करता भावन था।…
मधुर मीत बनूँ सुखधाम - मुक्तक - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
मन माधव नव कलित ललित हृदय अविराम , मन का उद्गार जीवन साथी के नाम। मुदित हृदय मकरन्द सुरभि मुख सरोज रसपान, …
स्मृतियाँ - कविता - प्रवीन "पथिक"
जब पहली बार ज़िन्दगी में आए थे; सबको खोकर तुझको पाए थे। मन की इच्छा शेष नहीं थी, ज़िन्दगी की पहली खुशी मनाए थे। तेरे शुभ्र भाल प…
तुमको निगाहें ढूंढ़ रही हैं - गीत - अशोक योगी "शास्त्री"
झिर मिर झिर मिर मेहा बरसे पागल मनवा मिलन को तरसे मन चंचल चित चोर हुआ है छोड़ गए हो तन्हा जबसे। बंद हुआ चिड़ियों का चहकना छोड़ …
स्त्री - कविता - प्रमोद कुमार "बन्टू"
रिस्ते नाते जितने होते, सबका मान वो रखती है। अंगारों पर खुद वो चलती, अपनी पहचान वो रखती हैं। नन्हें - नन्हें पाँव से चलती, नन्…
योग - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
योग रखता है निरोग स्वस्थ तन मन भागता है रोग। प्रकृति का अनूठा वरदान मांगता बस समय कि दान। इस अनुपम उपहार का हम करते यदि उपयोग धन बचता,…
पहचान - ग़ज़ल - सलिल सरोज
हर बात पे यूँ हंगामा नहीं किया जाता प्यास लगने पे समंदर नहीं पिया जाता बात जिन्दगी की है, सोचना पड़ता है बेटियों का हाथ यूँ ही नहीं द…
तुम हो ना - ग़ज़ल - अंकित राज
मुझे देख कर बैठ गऐ हो.....हो ना मुझे मुसलसल देख रहे हो.....हो ना मांग रहे हो रुख़्सत और ख़ुद ही! हाथ मे हाथ लिये बैठे हो.....हो ना दे…
वतन मेरा - कविता - विनोद निराश
वतन मेरा प्यारा, हिन्दुस्तान है , यही मेरा मान, यही अभिमान है। गोद में खेले है जिस, मिटटी की, वही आज हमारी देखो पहचान है। ऊँचा हि…
कागज़ कलम दवात - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
स्मृति के पन्नों पर आज विदित, जिंदगी कागज कलम दवात। हाथ रंगे काली स्याही से, गगन घनघोर घटा बरसात। बम…
सहरा (जंगल) - कविता - सुनीता रानी राठौर
आधुनिकीकरण में कटता सहरा, जीव-जंतुओं का उजड़ता आसरा। भटकते पशु पहुंचते शहर गांव में, ढूंढते अपना भोजन घर-आसरा। नगरीय विकास में…
वो भिखारन - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
हाँ वो भिखारन फैलाये थी हाथ, कुछ बहाने झूठे थे अपंगता भी झूठी थी मगर सच्चे थे जज्बात, थी बस भूख में सच्चाई पथराई आँखों में …
विश्वास - कविता - संजय राजभर "समित"
विश्वास एक मजबूत छत है पग-पग पर पनपती संशय से बचा लेता है, एक सामंजस्य है जो कठिन परिस्थितियों में भी विचलित होने से रोकत…
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