बस फ़ैशन में फँसा जमाना - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

फ़ैशन   का  भूत   नशा  बन  छाया,
गज़ब   इक्कीसवीं   युवजन  माया।
कोमल किसलय सज्जित ले काया,
मधुशाल   नग्न जग  रूप दिखाया। 

फ़ँस  चकाचौंध     बहुरंग दिखाया, 
तनु    कटे   फटे  बदरंग    कराया।
नित लाज शर्म  सब  बेच युवा मन,
मदमत्त    भ्रमित  जामा  पहनाया।

संस्कार व्यथित लखि कलियुगी युवा,
उल्लासित  फैशन  नव विविध  सभा।
अर्द्ध वसन  पहन  तन चपल  यौवन,
उत्तेजक    स्वरूप    कामुक   काया।

चलन   नव   फ़ैशन    बहुरंग   यहाँ,
रनिवासर    बदली       जीवन चर्या।
नव    सोच  नयी   प्रतिकूल फलक,
नूतन     पीढ़ी     मदमान        युवा।

बन      मीत   नशेरी        मधुशाला,
चरस   अफ़ीम     द्रग   लिये  गाज़ा।
परिभाष      नया    आया     फ़ैशन,
दौलत      रईश      आदत    बदला।

दिखावटी   प्रकृति  चहुँओर   दिशा,
बदले    त्यौहार      सब     परम्परा।
अब  रंग    ढंग    बदले     परिणय,
शृङ्गार     सजावट    सब     बदला।

आकर्षण   बन   फ़ैशन      बगिया,
इन्द्रधनुष  लुभावन   घर    खटिया,
भाषा  भी    मोहित     अब  फैशन ,
तज   निज  भाषा  बस अंगरेजिया।

चकाचौंध    बस     फ़ैशन   दुनिया,
मातु    पिता  गुरु     आदर   बदला।
चरण  स्पर्श  हाय   बाय      मार्निंग,
पति   आदर   नामों   में       बदला।

बदला       फ़ैशन   खाना     पीना,
साफ्ट   ड्रिंक   में    पानी   बदला।
रोल  गोल    प्लास्टिक  में  कंचन,
आभूषण   साजन     सब  बदला। 

वादन  गायन   लय   सुर  बदला,
खेती  , कल   कारखाना   बदला।
शिक्षा   दीक्षा     परीक्षा    नियम,
न्याय नीति जग  शासन   बदला। 

प्यार   मुहब्बत     फ़ैशन  बदला,
अब   प्रेमपत्र  मोबाइल    बदला।
लेन  देन   व्यापारिक       फ़ैशन,
व्यक्त  रीति  अनुशासन    बदला।

जीवन   का   हर   ढाँचा   बदला,
काम   क्रोध  सब   नाता   बदला।
तकनीक खेल अभिव्यक्ति मनुज,
बस   स्वार्थ  भूत  फ़ैशन  बदला।
 
बस    फ़ैशन   में   फँसा जमाना,
यथार्थ   लुप्त   है   झूठ  फँसाना।
कृत्रिमता  का   लेप   चढ़ा   जग,
भूल   विरासत    युवा      तराना।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली


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